Saturday, November 16, 2013

चलता है

पेड़ हैठूँठ है
चलता है, पतझड़ है।
आँसू है, गिरता है, 
चलता है, पतझड़ है।। 

बर्फ़ है, हवा है,
चलता है, ठंडा है।
मिसरा है, जलता है,
चलता है, ठंडा है ।।

लू है, ताप है,
चलता है, घाम है ।
सीना है, आग है,
चलता है, घाम है ।। 

मिट्टी है, गीली है,
चलता है, बरसात है।
तकिया है, सीली है,
चलता है, बरसात है।।

( आँगन है, गीला है,
चलता है, बरसात है।
लम्हा है, फ़िसला है,
चलता है, बरसात है।।)

तितली है, महकी है,
चलता है, ऋतुराज है।
दुपट्टा है, उड़ता है, 
चलता है, ऋतुराज है।।


Saturday, November 2, 2013

ये रात है शहर कि दुआ कीजिए

ये रात है शहर कि दुआ कीजिए।
ये चाल है पहर की दुआ कीजिए।

उँगलियों से तारों को बुझाते हो क्यों?
दब गए हैं जो छाले, उगाते हो क्यों?
खाली दिन को आँसुयों से न भरा कीजिए।
ये रात है शहर कि दुआ कीजिए। 

उजालों की बस्ती में अँधेरा कहाँ है ?
दीवानों की मजलिस में अकेला कहाँ है ?
ज़रा उनकी नज़र को पढ़ा कीजिए।
ये रात है शहर कि दुआ कीजिए।

कल जुलूसों में भर्ती हुए वो कहाँ हैं?
इक़लाबी शहादत में अपने कहाँ हैं? 
इतवार को न अनशन रखा कीजिए।
है रात ये शहर कि दुआ कीजिए। 

भुखमरी को, दावतों पर, समझते हैं वो ।
वाइन पीते हुए, सूखे से लड़ते हैं जो ।
अनपढ़ों से योजनाएँ लिखवा लीजिए। 
है रात ये शहर कि दुआ कीजिए। 

बाज़ारों को रोशन किया है किसी ने
मकानों को कर्ज़ में डुबोया किसी ने
खुशियों की मेहर को अदा कीजिए। 
है रात ये शहर कि दुआ कीजिए। 

जो दिन थे अपने, वो जाने कहाँ है ?
जो रातें थी उनकी, न जाने कहाँ है ?
यादों को करवटों में बुना कीजिए।
है रात ये शहर कि दुआ कीजिए। 

पुराने ख़तों को जो पढ़ते हो तुम,
बेनाम लिफ़ाफ़ों में रखते हो तुम, 
बातें है बहुत, कुछ कहा कीजिए।
है रात ये शहर कि दुआ कीजिए। 

शहर को जो अपना बताते हैं वो,
महफ़िलों में जो किस्से सुनाते हैं वो,
सन्नाटों को भी बेहर पर रखा कीजिये।
है रात ये शहर कि दुआ कीजिए। 

जागी जागी ये सड़कें कहाँ जा रही हैं ?
सोये सोये से राही को भटका रही हैं।
गलियों से सेहर को बुला लीजिए। 
है रात ये शहर कि दुआ कीजिए।