घड़ी की सुइयों से
जो समय लटका है,
उससे टपकते लम्हों का,
हिसाब कौन रखता है ?
अंतरिक्ष में दूर कहीं,
समय जहाँ जनमा है ।
प्रसव की ऐसी पीड़ा को,
हर पल कौन सहता है ?
कहने सुनने में ख़र्च हुए
चुप्पी के लम्हों से पूछो ।
अंतिम साँसों की धड़कन का,
मोल तय कौन करता है ?
टुकड़ा टुकड़ा जोड़ा है,
कैसे जीवन पूरा होता है ?
राहें पलट पलट के देखीं
जो समय लटका है,
उससे टपकते लम्हों का,
हिसाब कौन रखता है ?
अंतरिक्ष में दूर कहीं,
प्रसव की ऐसी पीड़ा को,
हर पल कौन सहता है ?
कहने सुनने में ख़र्च हुए
चुप्पी के लम्हों से पूछो ।
अंतिम साँसों की धड़कन का,
मोल तय कौन करता है ?
टुकड़ा टुकड़ा जोड़ा है,
या टुकड़ा टुकड़ा बीत रहा ।
आधी अधूरी यादों से,कैसे जीवन पूरा होता है ?
राहें पलट पलट के देखीं
निशाँ फिर भी मिलते नहीं ।
समय की सीधी गलियों में,
हर बार क्यों मुड़ना पड़ता है ?
ख़त जो कभी लिखे नहीं
फिर भी जिन्हें रोज़ पढ़ा ।
वो कोरे काग़ज़ से भरी हुई,
किताब संग क्यों रखता है ?
अनंत फैली इस सृष्टी में,
हर बार क्यों मुड़ना पड़ता है ?
ख़त जो कभी लिखे नहीं
फिर भी जिन्हें रोज़ पढ़ा ।
वो कोरे काग़ज़ से भरी हुई,
किताब संग क्यों रखता है ?
अनंत फैली इस सृष्टी में,
चंद अरमानों की जगह नहीं ।
क्यों क्षणभर खींची हर साँस को,
पूरा जीवन ढोना पड़ता है ?