एक शाम .... 
यूँ बर्फ़ पर पसरी हुई,
ये शाम कुछ नीली पड़ी ।
हवा चली जो ज़ोर से,
ज़रा सी फिर सिहर उठी ।
बेजान सूखे पेड़ों की,
तेज़ शाखों से गुज़र के ।
खरोंच लगाती शाम चली,
यूँ उठ के मेरे दरीचे से ।
यूँ बर्फ़ पर पसरी हुई,
ये शाम कुछ नीली पड़ी ।
हवा चली जो ज़ोर से,
ज़रा सी फिर सिहर उठी ।
बेजान सूखे पेड़ों की,
तेज़ शाखों से गुज़र के ।
खरोंच लगाती शाम चली,
यूँ उठ के मेरे दरीचे से ।
फिर सामने सड़क पार वाले,
बस स्टॉप के नीचे ।
सिमटी हुई खड़ी रही, शाम
फुटपाथ से थोड़े पीछे ।
अब लैम्प पोस्ट की गर्मी में,
कुछ कुछ पिघलती जाती है ।
बस स्टॉप के नीचे ।
सिमटी हुई खड़ी रही, शाम
फुटपाथ से थोड़े पीछे ।
अब लैम्प पोस्ट की गर्मी में,
कुछ कुछ पिघलती जाती है ।
जैसे प्रेम की प्यासी बिरहन, 
दो बाहों में डूबती जाती है । 
यूँही और लिपटी रही तो,
ये शाम भी सुलग जाएगी । 
जाते-जाते अपने पीछे,
रात का, काला निशां छोड़ जाएगी ।
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सुबह का रंग 
नींद तले, सपनों के,
नींद तले, सपनों के,
काफ़िले मिलते है जहाँ ।
रात गुज़रती है, यादों के,
रात गुज़रती है, यादों के,
टुकड़ों पर से वहाँ ।
यूँ ज़ख़्मी क़दमों से चलकर,
यूँ ज़ख़्मी क़दमों से चलकर,
लड़ख़ड़ा के गुज़र जाती है ।
ये रात रोज़ कुछ इस तरह ,
ये रात रोज़ कुछ इस तरह ,
सुबह को लाल कर जाती है ।
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बस यूँहीं ....
क़दम रुकते नहीं,
एक राह निकल पड़ती है।
साँस थमते ही,
एक आह निकल पड़ती है ।
जुस्तजूँ के जुगनू,
जगमाते हैं रातों में ।
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बस यूँहीं ....
क़दम रुकते नहीं,
एक राह निकल पड़ती है।
साँस थमते ही,
एक आह निकल पड़ती है ।
जुस्तजूँ के जुगनू,
जगमाते हैं रातों में ।
यादों के पतंगे,
फड़फड़ाते बरसातों में ।
सड़क पर चलती आवाज़,
दिल से गुज़र जाती है ।
आँखों से निकलकर बात,
शहर में खो जाती है ।
फड़फड़ाते बरसातों में ।
सड़क पर चलती आवाज़,
दिल से गुज़र जाती है ।
आँखों से निकलकर बात,
शहर में खो जाती है ।
खाली पड़ा ये दिन,
दोपहर सा बजता है ।
कहानी बिना किरदार कहीं,
पन्नों में भटकता है ।
दिन की थकन, रातों की,
करवटों में बांटने के लिए ।
कहानी बिना किरदार कहीं,
पन्नों में भटकता है ।
दिन की थकन, रातों की,
करवटों में बांटने के लिए ।
घड़ी की सुइयाँ चलती है बस,
धड़कने गिनाने के लिए ।
अपने ही मोम तले कभी,
जैसे शमा डूब जाती है ।
रात भी अपने आस्मां तले,
कभी झुककर टूट जाती है ।
दिन के खालीपन से,
नीदें भरा करती हैं ।
सीने की ठंडी आहों से,
सीने की ठंडी आहों से,
रातें जला करती हैं ।
हर दिल, हर दिन,
कितनी साँसे जीता है । 
सुना है इस शहर में,
कोई मुझसा रहता है।  
