Friday, July 19, 2013

छोटी मोटी नज्में - १

तिनका 
असमान में उड़ते पंछी से,
गिर गया था एक लम्हा कहीं।
तोड़ लाया था वो जिसे,
एक वक़्त की लरज़ती शाख़ से।
ऐसी ही उड़ती शामों को, 
तनहा, छत पर उतरते देखा है। 
ऐसे ही गिरते तिनकों को, 
दामन में संभाले रखा है।
हर बार ये कोशिश करता हूँ,
इन तिनकों को मिलाकर मैं
एक घोंसला फिर बना सकूँ,
जो टूट गया था आँधी में
कुछ तिनके मगर हर बार,
फिर भी कम पड़ जाते हैं 
कुछ तिनके जो उस बार,
तुम ले गयी थी संग अपने 

ढलता सूरज 
पेड़ की ऊँची सलाखों के पीछे,
एक रात का मुजरिम खड़ा है।
भाग रहा था जो दिन भर से,
उसे शाम को जाकर पकड़ा है।
जब पहरा देते चाँद को,
रात में झपकी सी लग जाएगी।
आस्मां से लटकती,
तारों की चाभी,
फिर इसके हाथ लग जाएगी।
वही चोर पुलिस का खेल,
कल फिर से खेला जाएगा।
पर आस्मां है ये धरती नहीं,
चोर फिरसे पकड़ा जायेगा।

इंतज़ार 
एक शाम,
दफ्तर से लौटते हुए,
मिल गया वो मुझे।
दोराहे पर खड़ा,
तन्हा, बेमानी, बुझा-बुझा।
लगाए अपनी ठहरी निगाहों को,
उस पीछे को जाते रस्ते पर।
आँखों का सूनापन पोंछकर,
मुझे देखा और मेरा भार -
दफ्तर का सूटकेस,
ले लिया मेरे हाथों से।
फिर निकल पड़ा मेरे संग वो,
नीचे झुकाए अपने सर को -
(शायद कुछ खोज रहा था)
आज का दिन।
मेरे साथ मेरे घर को लौट चला।


साया 
एक हल्की गर्म दोपहरी में,

एक तेज़ हवा के झोंके से।
गिर गई एक छाँव कोई,
उस शाख़ के तिरछे कोने से।
इससे पहले शायर कोई,
रख ले इसको नज्मों में।
पहना दूँ जाकर ये साया,
अपने हमसाए के क़दमों में।

2 comments:

  1. नरेशन आपका बेस्ट हैण्ड है फिर से अच्छा लगा

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  2. इससे पहले शायर कोई,
    रख ले इसको नज्मों में।
    पहना दूँ जाकर ये साया,
    अपने हमसाए के क़दमों में।

    Bahut Khoob.

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