Sunday, July 14, 2013

बिना मीटर की ग़ज़ल - ४

महफ़िल में तेरी बात यूँही चलती रही रातभर,
जा-जा के तेरी याद यूँही रूकती रही रातभर ।१। 

हमबिस्तर हो गए हैं जो कुछ सपने तुम्हारे, 
ठंडी सफ़ेद चादर भी, जलती रही रातभर ।२। 

बहुत संभाले रखा था यादों को तुम्हारी हमने,
क्या हुआ कि आखों से वो, गिरती रही रातभर ।३। 

एक शेर में जो ज़िक्र आ गया उनका कभी,
पूरी ग़ज़ल ही हमारी, महकती रही रातभर ।४।  

कितने सपने बिठाए रखे हैं पलकों पर तुमने,
जो हर बार उठ-उठ कर, झुकती रही रातभर ।५।  

बड़े चैन से सोए थे हम तगाफुल में तेरे,
फिर इक सितम की चाह हमें, चुभती रही रातभर ।६। 

चाँदनी की ठंडक टूटते तारों से पूछो,
जो एक-एक कर शमा को, भुझाती रही रातभर ।७। 

3 comments:

  1. वाह ! क्या बात है...एकदम मझे हुए शायरों वाली बात है आप में ।

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  2. हा हर मिशरा खूब है!!

    रंजीत सर कैसे है , आखिर आप भी छोड़ ही गये।

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  3. बड़े चैन से सोए थे हम तगाफुल में तेरे,
    Gazal always comes after oscillation between two. Its interesting to see through the heart of poet. what I like most in your writings is it doesn't let person (writer) allow inside with his ego.

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