Tuesday, September 3, 2013

बस यूँ हीं

लौट आना फिर उसी सफ़र में, 
जहाँ कभी वो चला नहीं।
भरकर थकान यादों में अपनी, 
जहाँ कभी वो रुका नहीं।
फिर वही ज़िन्दगी को मोड़ते रहना, 
कि कोई कोना कभी चुभे नहीं।
फिर उसी चुभन को रोते रहना,
कि दर्द अब कोई देता नहीं।
राज़ दिल के लबों पर रखना,
और कहना कि कोई सुनता नहीं।
बात गैरों से करते रहना, 
और अपना किसी को कहना नहीं।
चहरे पर रखना ख्वाबों की चादर,
पर आँखों को अपनी ढकना नहीं।
पढ़ते रहना ख्वाब उनके सारे, 
कि सफ़र अभी ये रुका नहीं। 

2 comments:

  1. अकेली यात्रा में लिखना ज्यादा हो पाता है..जारी रखिये।
    फिर उसी चुभन को रोते रहना...वाह !

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  2. फिर वही ज़िन्दगी को मोड़ते रहना,
    कि कोई कोना कभी चुभे नहीं।
    Bahut Khoob..

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