रोज़,
९ बजे सुबह के,
९ बजे सुबह के,
और शाम के ६ बजे।
पास के गिरीजाघर में,
बजते हैं ज़ोर-ज़ोर से घंटे ।
रोज़,
मैं ९ बजे जाता हूँ दफ़्तर,
मैं ९ बजे जाता हूँ दफ़्तर,
और ६ पर लौट आता हूँ घर।
कल,
रविवार की सुबह
अपने समय से,
फिर बज गया
गिरजाघर का घंटा।
रविवार की सुबह
अपने समय से,
फिर बज गया
गिरजाघर का घंटा।
मैं,
बालकनी में बैठा
गोद में रखकर अखबार,
चाय पी रहा था।
हाँ,
बालकनी में बैठा
गोद में रखकर अखबार,
चाय पी रहा था।
हाँ,
इंसान होने के कुछ तो फायदे हैं ।
 
Last line compliments rest of poem.. Heart says.. Just Wow.
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