धूप में धुले धुले ,
ये पेड़ जब चमकते हैं।
हवा चले जो ज़ोर से,
तो झूम के लिपटते हैं।
शाख़ को ये मनचले,
यहाँ वहाँ घुमाकर।
उड़ती हुई पतंग को,
फिर कूद कर लपकते हैं।
बादलों को थामकर -
टहनियों की डोर से।
नहा के निकले बारिशों से,
ज़ुल्फ़ को झटकते हैं।
गुज़रे जो पास से कभी,
हसीन दिल वो गुलबदन।
पत्तों पर लिखे आवारा ख़त,
हौले से फिर टपकते हैं।
वो नाम गोद शाखों पर,
यार के खुमार में।
इसे प्यार के करार का,
वो दस्तख़त समझते हैं ।
उड़ जाते हैं परिंदे जब,
काम की तलाश में। 
ये गोद लेके घोंसलों को,
लोरिया सुनाते हैं।
जब छुट्टियां चटकती हैं।
ये ठंडी छाँव की वहीं,
कुल्फ़ियां सजाते हैं।
जो कारे-कारे बादलों को,
श्याम खींच लाते हैं।
सावन पे झूलते हुए,
ये कजरिया सुनाते हैं।
उस फल को देखो रात में, 
कहते हैं चाँद वो जिसे।
सूरज की ताप में उसे, 
हर रोज़ वो पकाते है।  
जल जाती है जो टहनियां,
चाँदनी की आग में। 
तारों की छाँव के तले,
फिर उँगलियाँ बुझाते हैं।
गर्मियों में ताप से,जब छुट्टियां चटकती हैं।
ये ठंडी छाँव की वहीं,
कुल्फ़ियां सजाते हैं।
जो कारे-कारे बादलों को,
श्याम खींच लाते हैं।
सावन पे झूलते हुए,
ये कजरिया सुनाते हैं।
