1)
बस इतना समझना काफ़ी था,
कि कुछ और समझना बाक़ी नहीं ।
दोनों ने एक दूसरे को नासमझ समझा ।।
2)
दिनभर गरजे बादल। 
दिनभर बरसा पानी ।
दो आँख में फिर भी ठहरा नहीं पानी ।। 
3)
रात गिरने की देर थी,
और साँसों ने करवट ली ।
दिनभर जिस्म में जान भरी,
और खुद की जान निकल गई ।।
4)
सूखी टहनियाँ तोड़ी सबने, 
ख़ूब अलाव जलाया, हाथ तापा । 
सुना है इस दिसम्बर चुनाव हैं ।।
5 )
सर्दी के संदूक से कुछ कपड़े हैं निकाले ।
स्वेटर, मफ़लर, टोपी, ऊन के दस्ताने ।
पिछली सर्दी की गर्मियाँ अब तक संभाल कर रखी हैं ।।
6)
अभी अभी पककर निकला बासमती का दाना,
सफेद बदन पर अपने ओढ़े, खुशबू का दुशाला ।
अभी अभी निकली है बाहर,वो अपने घर से नहाकर ।।
7)
लाचारी है दुनिया में पसरी ।
बचपना खा गई है भुखमरी ।
उठो,एक कविता लिखो,तुक बिठाओ और सो जाओ ।।
8)
इमामबाड़े में मिले थे कल, तो राम राम कर लिया ।
कालीबाड़ी में दिखे तो, झुक कर सलाम कर दिया ।
एक तरह का स्वाद ज़बाँ पर, भाता नहीं हमें ।।
9)
पास ही रहता है , पर बात नहीं होती ।
आवाज़े फिसलती रहती है दिवार पर ।। 
सीने पर आजकल कई सिलवटे पड़ी हैं ।। 
10)
बैठे रहती हैं दीवारों पर एक साथ । 
बातें सुनाती हैं चहक के हर बार ।
ये किताबें यूँ ही उड़ती फिरती हैं मेरे घर में ।।
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(गुलज़ार साहब से माफ़ी माँगते हुए)
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(गुलज़ार साहब से माफ़ी माँगते हुए)
 
कभी-कभी गज़ब बढ़िया लिख देते है आप :)
ReplyDeleteAap guljar ji say kafi prbhawit lagtay wo sakhsiyat hi asi hai
ReplyDeleteAap guljar ji say kafi prbhawit lagtay wo sakhsiyat hi asi hai
ReplyDeleteकाफी दिनों बाद आपका ब्लॉग पढ़ा ! वाकई बेहतरीन त्रिवेणियाँ ।
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