गीली गीली मिट्टी पे,
सूखे मन के पत्ते पर,
छोटी छोटी बूँदों में,
लम्बे गहरे साए हैं ।
ठंडे सीले झोकों में,
तपते जलते रहते हैं,
आधे आधे लम्हों से,
सदियों के सताए हैं ।
सूखे मन के पत्ते पर,
छोटी छोटी बूँदों में,
लम्बे गहरे साए हैं ।
ठंडे सीले झोकों में,
तपते जलते रहते हैं,
आधे आधे लम्हों से,
सदियों के सताए हैं ।
खोई खोई यादों के, 
काले चिट्टे बादल भी, 
आड़े तिरछे राहों से,
प्यास बुझाने आए हैं ।
हल्की पीली चादर पे,
प्यास बुझाने आए हैं ।
हल्की पीली चादर पे,
सोई सोई छाँव ने,
उड़ते उड़ते भँवरों संग,
उड़ते उड़ते भँवरों संग,
ख़्वाब कई खिलाएँ हैं । 
आधा आधा चंदा है,
अधजगे आकाश में,
पूरा पूरा जलकर भी,
ख़्वाब कई बचाएँ हैं ।
जलती बुझती सड़कों पे,
उजली उजली रातें हैं,
आती जाती राहों में,
ठहरी सिमटी बाहें हैं ।
सुनसान सा शहर है,
तेरी मेरी बातों में ।
गीले सूखे रहते हैं,
सावन की बरसातों में ।
आधा आधा चंदा है,
अधजगे आकाश में,
पूरा पूरा जलकर भी,
ख़्वाब कई बचाएँ हैं ।
जलती बुझती सड़कों पे,
उजली उजली रातें हैं,
आती जाती राहों में,
ठहरी सिमटी बाहें हैं ।
सुनसान सा शहर है,
तेरी मेरी बातों में ।
गीले सूखे रहते हैं,
सावन की बरसातों में ।
