Thursday, July 3, 2014

सुसाइड

धड़कन के कहने पे
होठों का खुलना
गहरी किसी प्यास का
फिर गले से उतरना -
एक आते हुए पल ने
ये गौर से देखा था
और जाती हुई साँस पे
एक भार सा रखा था ।
उठाने में जिसे
पलकें कपकपाई थीं
एक ही करवट में जैसे
ज़िंदगियाँ समाई थी ।
कई जन्म लगे थे उसे
इस मुकाम पर आने में
कोशिश बहुत करी थी उसने ,
हर राह को भटकाने में ।
कई बार छिला था उसे
ठंडी नुकीली छाँव ने ।
खुलकर फिर बँध जाती थी
कई बार भवँर सी पाँव में ।

ठान के आया था इस बार
या उसको कोई भरम हुआ ।
रास्तों का ये कारवां
अब शायद यहीं खत्म हुआ ।
सफ़र की लम्बी गहरी,
गलियों में उसने जाना था । 
यहाँ जन्मों तक यूँ भटकना
कुछ लम्हों का हरजाना था ।
पहुँच कर आखिर,
पतली चिकनी
पगडण्डी के छोर पर ।
वो बैठा रहा अकेला
कुछ देर, ज़रा सोचकर ।
फिर बंद कर आँखें अपनी
बैठ अंधेरे की सवारी पे,
एक साँस भरी थी लम्बी
नए सफ़र की तैयारी में ।
पूरा जीवन जैसे,
एक लम्हे में भरना चाहा हो ।
एक अँधेरी सुरँग से उसे 
जैसे कोई बुलाया हो ।
फिर हिम्मत कर उसने
एक बुज़दिल छलांग लगाई थी
उस तरफ को जहाँ पर
ख़ामोशी की गहरी खाई थी ।

न गिरने की आहट हुई 
न मरने का निशां मिला 
एक ख्याल ने आज
फिर खुदखुशी की ।
सुना है सीने में अभी
दफ़नाया है उसे ।

4 comments:

  1. बेहतरीन है । एकदम गुलज़ार साब का टच मिल रहा है। :)

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  2. very nice poem in nicely woven words...... not writing much as unsure of many things.....but of course no doubt about poem itself, it is really nice to read.....congratulations

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  3. न गिरने की आहट हुई
    न मरने का निशां मिला
    एक ख्याल ने आज
    फिर खुदखुशी की ।
    सुना है सीने में अभी
    दफ़नाया है उसे ।

    बहुत खूब

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  4. फिर बंद कर आँखें अपनी
    बैठ अंधेरे की सवारी पे,
    एक साँस भरी थी लम्बी
    नए सफ़र की तैयारी में ।
    पूरा जीवन जैसे,
    एक लम्हे में भरना चाहा हो
    .
    बहुत खूब

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