कोई तो चाँद होगा,
जो हर शायर से बचा होगा
दाग लगे होगें जिसपे,
पर हर उपमा से धुला होगा ।
उस चाँद को ले आना,
किराए की एक रात में ।
नींद दे रखी है मैंने,
शहर को सौगात में ।
तुम अपनी ही आवाज़ में 
एक कविता बनकर आना ।
गर पहनाए कोई अलंकार,
तो मुक्त छंद हो जाना  । 
मैं अपने ख़ाली लफ़्ज़ लिए
क्षितिज पर लेटा मिलूँगा ।
उधड़े जो ज़मीन-आस्मां,
तो कलम से सीता रहूँगा । 
बंद कर के दोनों दुनिया 
खाली चाँद पर चलेंगे । 
बिन ईंटे, पत्थर, गारे के 
किसी मकान में रहेंगे ।
जहाँ चेहरों की नहीं ,
परछाइयों की बस्ती हो ।
कीमत जहाँ आस्मां की
जहाँ चेहरों की नहीं ,
परछाइयों की बस्ती हो ।
कीमत जहाँ आस्मां की
ज़मीन से ज़रा सस्ती हो । 
कोई आवाज़ न दे सकेगा
और बात सब सुनेंगे ।
आकाश से गिरती धूल के
चमकीले सिक्के बुनेंगे ।
एक महीने जितना बड़ा
चाँद का एक दिन होगा
माने हर दूसरा दिन वहां
पहली तारीख़ सा होगा ।
ऊँमीद की बंजर ज़मीन पर
बीच के सारे गड्ढों को
मंज़िलों की राख से भरेंगे ।
वहां हवा नहीं चलेगी
तो राहें कम मुड़ेंगी ।
क़दमों के निशाँ पढ़कर
सदियाँ अपनी कहानी कहेंगी ।
ये चाँद भी अपने जैसा है
इसके दो दो हिस्से हैं ।
एक उजाला एक अँधेरा
बाकी बीच के किस्से है ।
हम अपना अपना हिस्सा
बिखराते हुए चलेंगें ।
आते जाते वक़्त के पंछी
जी भर कर जिन्हें चुगेंगे ।
तुम पकड़े रहना आस्मां,
दुनियावाले अगर हमें 
कहने लगे भगोड़ा ।
तुम उनकी ऐसी बातों से
बिलकुल परेशान न होना ।
जाते जाते धीरे से
बस इतना सा कह देना -
हमारे हल्के लफ़्ज़ों के लिए
कोई आवाज़ न दे सकेगा
और बात सब सुनेंगे ।
आकाश से गिरती धूल के
चमकीले सिक्के बुनेंगे ।
एक महीने जितना बड़ा
चाँद का एक दिन होगा
माने हर दूसरा दिन वहां
पहली तारीख़ सा होगा ।
ऊँमीद की बंजर ज़मीन पर
जब कुछ नहीं उगेगा ।
फेंके सपनों के बीज का,
फिर जी भर पेट भरेगा ।
वहाँ साँसों पे राशन होगा
तो इतना सा कर लेना ।
अपने आधे जीवन को
मेरे आधे में मिला लेना ।
और धरती को देखकर
जब प्यास कभी लगेगी ।
उनके करवाचौथ के दिन
अपनी एक नदी बहेगी ।
सड़कों की ज़रुरत नहीं
लम्बी छलांगों में चलेंगे ।फिर जी भर पेट भरेगा ।
वहाँ साँसों पे राशन होगा
तो इतना सा कर लेना ।
अपने आधे जीवन को
मेरे आधे में मिला लेना ।
और धरती को देखकर
जब प्यास कभी लगेगी ।
उनके करवाचौथ के दिन
अपनी एक नदी बहेगी ।
सड़कों की ज़रुरत नहीं
बीच के सारे गड्ढों को
मंज़िलों की राख से भरेंगे ।
वहां हवा नहीं चलेगी
तो राहें कम मुड़ेंगी ।
क़दमों के निशाँ पढ़कर
सदियाँ अपनी कहानी कहेंगी ।
ये चाँद भी अपने जैसा है
इसके दो दो हिस्से हैं ।
एक उजाला एक अँधेरा
बाकी बीच के किस्से है ।
हम अपना अपना हिस्सा
बिखराते हुए चलेंगें ।
आते जाते वक़्त के पंछी
जी भर कर जिन्हें चुगेंगे ।
तुम पकड़े रहना आस्मां,
मैं नए नक्षत्र बुनूँगा । 
हम दोनों के किस्सों से
जी भर के इन्हें भरूंगा ।
जी भर के इन्हें भरूंगा ।
कहने लगे भगोड़ा ।
तुम उनकी ऐसी बातों से
बिलकुल परेशान न होना ।
जाते जाते धीरे से
बस इतना सा कह देना -
हमारे हल्के लफ़्ज़ों के लिए
ये ज़मीन बहुत भारी है । 
इसलिए आजकल अपनी
चाँद पर जाने की तैयारी है ।
इसलिए आजकल अपनी
चाँद पर जाने की तैयारी है ।
 
ये चाँद भी अपने जैसा है
ReplyDeleteइसके दो दो हिस्से हैं ।
एक उजाला एक अँधेरा
बाकी बीच के किस्से है
सुंदर लेखन है निरंतर नई दिशाओं को छूकर आगे बढ़ने का प्रयास और फिर ठहर जाना .....लगता है असमंजस से बहर असमंजस गढ़ा गया कोई .....कविता बढ़ती जाती है कवि छिपता जाता है .....जैसे सुनसान राह में अकेला मासूम मिल जाये कोई .....जी हाँ पाठक के मन में यही भाव आना चाहिए ...एक सुंदर रचना के लिए बधाई