Monday, March 25, 2013

फिर एक बार ..

फिर मेरा शेर लिख के अपने पे यूँ गुमां करना,
फिर तेरा कुछ सोच के ग़ालिब का यूँ बयाँ करना ।१।

फिर एक और हफ़्ते का शान से यूँ बढ़ जाना,
फिर एक और हफ़्ते का अपने दिल को समझाना ।२।

फिर बारिश से मिल के बर्फ़ का यूँ पिघल जाना,
फिर बेवजह उस आख़िर मुलाकात का याद आना ।३।

फिर इस बार घर जाकर पुराने कपड़े दे आना,
फिर इस बार घर जाकर पुराना कर्ज़ चुका आना ।४।

फिर तेरा उस पहर तालाब से निकल आना,
फिर तेरे उस शहर का बेसाख्ता* जल जाना ।५।

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(बेसाख्ता = spontaneous)
जैसा दिखा रहा है, ये कोई ग़ज़ल नहीं है। बस कुछ अकेले से पड़े शेरों का क़स्बा है।


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