Sunday, April 14, 2013

दंगों का दंगल


बता रंग देखकर धुंए का,
जो उस गली से निकल रहा है।
है घर हिन्दू का या मुसलमान का,
जो भभक के जल रहा है।। 
घर जला जिस दिन दंगे में, 
हर मदद को मैं तरसा था।
अब बता मुझे ऐ बादल ,
किस कारण तू नहीं बरसा था??
लाखों की भीड़ में उसका- 
चेहरा पहचानता कौन ?
जब आग लगाई अपनों ने,
तो घर मेरा बचाता कौन ??
सड़कों पर इंसानी खाल में,
हैवान नाच रहा था।
हाथ में लिए तलवार,
नेता का भांड नाच रहा था।।
पड़ोस में चाचा कह कर,
बुलाता था मैं जिसे।
कल रात इस तरफ पत्थर,
उछालते देखा उसे।।
ग़दर की गवाही देने,
आख़िर आया यहाँ कौन है?
जो चुप है,उससे क्या पूछूँ -
असली गुनहगार यहाँ कौन है??
जो चला गया है ऊपर, 
उसकी कमी खलती है। 
जो रह गया है नीचे,
उसे ज़िन्दगी खलती है।।
अपने दिए मुआवज़े का, 
मांगने हिसाब आया है।
सुना है आज अख़बार में, 
ऐलान-ए-इंतेखाब आया है।।
हैरां है सब कि कातिल,
अब दरसे-अम्‍न२ पढ़ाता है। 
सरे-आम मकतूल की तस्वीर पर,
बेशर्मी के फूल चढ़ाता है।। 
अब तुझसे क्या पूछूँ, ऐ खुदा-
इस साज़िश में कौन शामिल है?
वो कहतें हैं, जिसने बवाल किया-
उनका तू ही पीर-ए-कामिलहै।।
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१-चुनाव 
२-अमन का पाठ
३ जिसका क़त्ल हुआ हो 
४-उत्तम/परफेक्ट टीचर/लीडर।

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