कितनी ही आँखों में ये गोल-गोल, काली रातें तैरती रहती हैं । अपनी अपनी रातें सब ने पलकों में बचाई रखी हैं। सब चाँद को देखते रहते हैं और किसी आशिक की तरह, मौका पाते ही, सपने पलकों के गेट को फांद कर आँखों में चले आते हैं ।सपने भी तरह तरह के होते हैं, जैसे तरह तरह के आशिक होते हैं । कुछ ही सपने अपने होते हैं। कुछ सपने केवल सपने होते हैं । रात टपकती रहती है आसमान से । नींद भीगती रहती है इस बारिश में । डर भी लगा रहता है न जाने कब का बोया सपना आज फूट पड़े । कितनी ही बीती रातों को मिटा देने का मन करता है । कितने ही रातों में मिट जाने का मन करता है । पर कुछ मिटता नहीं । रात बस अपना काला रंग ऊँगलियों पर छोड़ कर फिर उड़ जाती है । रात में, सड़कों पर चलता शोर भी शहर का सपना है । कुछ जगमगाते, कुछ भुजे हुए। कुछ दूर से एक दुसरे को आवाज़ देते हुए । ध्यान से सुनो कभी क्या कहते हैं ये एक दुसरे से । कितनी भी खिड़कियाँ बंद कर लो, कहीं न कहीं से आवाज़ आती रहती है । न जाने अब की ये कौन सी खिड़की बंद कर दी, जो अपनी ही आवाज़ सुनाई नहीं पड़ती । बस शोर ही नज़र आता है । रात का क्या है, कट ही जाएगी । करवटों के मोड़ से गुज़रती हुई, सुबह की चोटी पर पहुँच ही जाएगी । रास्ते में, कुछ सपनों में भीगना होगा । वो भी सुबह की हवा में सूख जाएँगे । पर कुछ सपनों की सीलन, दिन के आने पर भी लगी रह जाती है । कुछ बातें कहानी और कविता के बीच से निकल जाती हैं। कुछ रातें, नींद और सपनों के बीच टंगी रह जाती हैं ।
 
Unsure...........।
ReplyDeleteपर कुछ सपनों की सीलन, दिन के आने पर भी लगी रह जाती है । कुछ बातें कहानी और कविता के बीच से निकल जाती हैं। कुछ रातें, नींद और सपनों के बीच टंगी रह जाती हैं ।
Beautifully carved imagination.....