शाम का नक्शा 
हर रोज़,
जब शाम उतरती है
दिन के शजर से ।
एक नक्शा छोड़ जाती है
बरामदे की दीवार पर मेरे ।
रात भर भटकता हूँ,
उस नक़्शे में दबी
वक़्त की सुनसान गलियों में ।
कभी तो मिल जाए
वो एक लम्हा,
जिसे जी कर कभी
मैं कहीं भूल आया हूँ ।
इंतज़ार
इंतज़ार करते रहे वो दोनों,
कभी आग लगेगी इस इंतज़ार को।
जिसकी राख मलकर अपने जिस्म पर,
फिर एक नई चाहत उगा लेंगे दोनों।
पर अब इस भट्टी में इतनी आग कहाँ ?
बस ठंडी आहें जलती हैं।
बरसती हैं जब यादें कहीं,
कोई दबी उम्मीद
फिर फट पड़ती है।
टिंकू की उलझन
हर रोज़,
जब शाम उतरती है
दिन के शजर से ।
एक नक्शा छोड़ जाती है
बरामदे की दीवार पर मेरे ।
रात भर भटकता हूँ,
उस नक़्शे में दबी
वक़्त की सुनसान गलियों में ।
कभी तो मिल जाए
वो एक लम्हा,
जिसे जी कर कभी
मैं कहीं भूल आया हूँ ।
इंतज़ार
इंतज़ार करते रहे वो दोनों,
कभी आग लगेगी इस इंतज़ार को।
जिसकी राख मलकर अपने जिस्म पर,
फिर एक नई चाहत उगा लेंगे दोनों।
पर अब इस भट्टी में इतनी आग कहाँ ?
बस ठंडी आहें जलती हैं।
बरसती हैं जब यादें कहीं,
कोई दबी उम्मीद
फिर फट पड़ती है।
टिंकू की उलझन
टांग कर बारिशें ,
अपनी छत्री के हैंडल पर वो ।
अपनी छत्री के हैंडल पर वो ।
दूसरे सिरे से,
खोंचने लगा बादलों को ।
कल रात कहा था अम्मा ने,
कल रात कहा था अम्मा ने,
मिठाई रख दी है
ऊपर, सिकहर पे ।
ऊपर, सिकहर पे ।
अब परेशान बेचारा घूम रहा है । 
कि ये "ऊपर" से
रस तो टपक रहा है ।
कि ये "ऊपर" से
रस तो टपक रहा है ।
पर मिठाई छुपाई है कहाँ आखिर? 
इसका पता क्यों नहीं लग रहा है?
इसका पता क्यों नहीं लग रहा है?
 
अपने दिल से धड़कते जज्बातों का सागर उड़ेलते प्यारे मासूम कवी तुम जल्दी आया करो तुम्हारी कविताएँ पसंद हैं मुझे। दिल पर सरसराती अनुभवों की चटक लड़ी चमकते बेबाक कवी तुम जल्दी आया करो क्योंकि तुम्हारा लेखन पसंद है मुझे।
ReplyDeleteAll 3 are all Fantastic emotions. Big Thumbs Up to you...
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ReplyDelete"इंतज़ार करते रहे वो दोनों,
कभी आग लगेगी इस इंतज़ार को।
जिसकी राख मलकर अपने जिस्म पर,
फिर एक नई चाहत उगा लेंगे दोनों।
पर अब इस भट्टी में इतनी आग कहाँ ?"
waah ..bahut khoobsurat