जूं
सर पर चढ़ा था कबसे,
भागता फिरता था हर कहीं,
खुजली सी रहती थी हर समय।
कितनी दफ़े कुरेदा,
कितनी दफ़े धोया,
फिर भी निकला नहीं ।
एक दिन भागता हुआ
ठहर गया कहीं -
और लपक लिया मैंने।
हाथ आ ही गया आखिर।
नाखून के बीच रखकर
दाब दिया मैंने।
ना खून निकला
न दर्द हुआ
बस एक हलकी सी
"टिक" सी आवाज़ भर आई ।
वो एक लम्हा था वक़्त का -
सर पर चढ़ा था कबसे,
भागता फिरता था हर कहीं …
-------
फ़सल
मेरी आँखों को चूमकर तुमने ,
एक सपना बो दिया था उस दिन।
मैंने भी रोज़ सींची थी ,
आँखों की वो ज़मीन -
कभी सूखी न रहने दी ।
शायद अबकी,
पानी कुछ ज्यादा खारा था ।
शायद अबकी,
कुछ बंजर सी गई है वो ज़मीन ।
सर पर चढ़ा था कबसे,
भागता फिरता था हर कहीं,
खुजली सी रहती थी हर समय।
कितनी दफ़े कुरेदा,
कितनी दफ़े धोया,
फिर भी निकला नहीं ।
एक दिन भागता हुआ
ठहर गया कहीं -
और लपक लिया मैंने।
हाथ आ ही गया आखिर।
नाखून के बीच रखकर
दाब दिया मैंने।
ना खून निकला
न दर्द हुआ
बस एक हलकी सी
"टिक" सी आवाज़ भर आई ।
वो एक लम्हा था वक़्त का -
सर पर चढ़ा था कबसे,
भागता फिरता था हर कहीं …
-------
फ़सल
मेरी आँखों को चूमकर तुमने ,
एक सपना बो दिया था उस दिन।
मैंने भी रोज़ सींची थी ,
आँखों की वो ज़मीन -
कभी सूखी न रहने दी ।
बहुत दिन हो गए,
पर सपना अभी तक वो उगा नहीं ।शायद अबकी,
पानी कुछ ज्यादा खारा था ।
शायद अबकी,
कुछ बंजर सी गई है वो ज़मीन ।
 
हा हा ...जुएँ पर इतनी भावनात्मक बात शायद ही किसी ने लिखी हो ! :)
ReplyDeleteऔर फ़सल के लिए --
"जो सपना बोया है, उसको अच्छे से सींचना...
ख़्वाब के बीज को हकीक़त की ज़मीं देना....."
khoob !
Deleteघडी की टिक के साथ जुएँ की टिक मिल सी गयी- कौन मरा, पता नहीं चला ।
ReplyDeletemera bhi abhi tak iska doubt hai :)
Deleteलम्हा शायद जूँ की तरह टिक न मर पाये ........
ReplyDeleteman behal jay bas ...
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