सफ़र तन्हा था नहीं ,
क्यों मज़िल अकेली लगती है ?
ज़िन्दगी जब भी मिली ,
तुझ बिन पहेली लगती है ।
जिस वक़्त को हमने थामा था,
उमीदों के उन हाथों से ।
वो कब का जी के गुज़र गया,
बस उम्रों का निशाँ बाकी है ।
ज़माने के हर शोर पे हमने,
ज़िन्दगी को ज़ोर उछाला था ।
अब आपस के सन्नाटे में,
यूँ डूब के जीना भारी है ।
ख़्वाबों की दो गलियों नें
शहर बसाए थे कितने !
आशियाने बने मगर,
क्यों वीरानी सी छाई है ?
हर बात जो तुमने समझी थी ,
हर चुप जो मैंने जानी थी ,
वो कहा सुना सब बीत गया।
जब दी दस्तक ख़ामोशी ने -
क्यों आवाज़ तुम्हारी आई है ?
क्यों मज़िल अकेली लगती है ?
ज़िन्दगी जब भी मिली ,
तुझ बिन पहेली लगती है ।
जिस वक़्त को हमने थामा था,
उमीदों के उन हाथों से ।
वो कब का जी के गुज़र गया,
बस उम्रों का निशाँ बाकी है ।
ज़माने के हर शोर पे हमने,
ज़िन्दगी को ज़ोर उछाला था ।
अब आपस के सन्नाटे में,
यूँ डूब के जीना भारी है ।
ख़्वाबों की दो गलियों नें
शहर बसाए थे कितने !
आशियाने बने मगर,
क्यों वीरानी सी छाई है ?
हर बात जो तुमने समझी थी ,
हर चुप जो मैंने जानी थी ,
वो कहा सुना सब बीत गया।
जब दी दस्तक ख़ामोशी ने -
क्यों आवाज़ तुम्हारी आई है ?
 
कहा सुना सब बीत गया जब दी दस्तक ख़ामोशी ने आवाज़ तुम्हारी आई है ....beautiful lines n a beautiful nazm....
ReplyDeleteकभी कभी बड़ी ईर्ष्या होती है आपसे...दरअसल हर उस व्यक्ति से होने लगती है जो अपने भावों को सुन्दरता से शब्द दे पाता है... हम भाव तो बरसने की कला ही नहीं जानते...सुन्दर...
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