Sunday, March 9, 2014

मेसेज वाया मौसम

बर्फ़ में घुली हुई,
धूप जब गलने लगे । 
मौसम की जमी हुई,
साँस जब चलने लगे ।
शाख पर खिली हो जब ,
किलकारी पहले पत्ते की ।
नर्म हाथों से छूना तुम ,
एक आवाज़ मेरी भी । 

पूरब से चली है जो,
सूरज के पीले आँचल में ।
परिंदों ने उठाई वो,
डोली अपने हाथों से ।
घर के किसी आँगन में,
घरोंदे जब उगने लगे ।
एक तिनका चुरा लेना तुम,
एक आशियाना अपना बने ।

देखा था कल बाग में,
सूखे, ठूँठ पेड़ पर ।
बर्फ़ थी बिझी जहाँ,
वहीं से दो इंच ऊपर ।
जब एक राॅबिन1 फड़का था 
तब देख के ऐसा लगता था ,
सफ़ेद चादर ओढ़ा पेड़ ,
कोमा से बाहर निकला था ।
यूँ छू दिया था मौसम की ,
एक ज़िंदा गरम साँस ने । 
भरा था तुमने जैसे कभी ,
मुझको अपनी पनाह में । 

आस्मां है अस्तबल,
जिन सफ़ेद घोड़ों का ।
इंतज़ार है उन्हें भी
मौसम की नई फ़सल का ।
दिखेगी हरी घांस जब,
दौड़ कर ज़मीन पे आएँगे । 
लादे अपनी पीठ पे ,
संग सूरज को खींच लाएँगे ।
आवाज़ गिरे जो कानों में,
आस्मां से गड़गड़ाहट की ।
कुछ बूंदें पैग़ाम देंगीं तुम्हें,
उस आने वाली प्यास की ।। 
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1- एक लाल रंग का पक्षी 

2 comments:

  1. "मेसेज वाया मौसम" को पोस्ट किये काफ़ी दिन हो गए.. अब "मेसेज वाया फाल्गुन" जैसा कुछ पोस्ट कर दीजिये ।
    एक अदने-से पाठक की विशेष डिमांड है । :)

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  2. मस्त ! इन अहसासों को जी लेने को मन मचल उठा है । फिर से मन माधुरी दीक्षित हो चला है...

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