Thursday, April 24, 2014

ऐसे ही लिख दी

गीली गीली मिट्टी पे,
सूखे मन के पत्ते पर,
छोटी छोटी बूँदों में,
लम्बे गहरे साए हैं ।
ठंडे सीले झोकों में,
तपते जलते रहते हैं,
आधे आधे लम्हों से,
सदियों के सताए हैं ।

खोई खोई यादों के, 
काले चिट्टे बादल भी, 
आड़े तिरछे राहों से,
प्यास बुझाने आए हैं ।


हल्की पीली चादर पे, 
सोई सोई छाँव ने,
उड़ते उड़ते भँवरों संग, 
ख़्वाब कई खिलाएँ हैं । 
आधा आधा चंदा है,
अधजगे आकाश में,
पूरा पूरा जलकर भी,
ख़्वाब कई बचाएँ हैं ।

जलती बुझती सड़कों पे,
उजली उजली रातें हैं,
आती जाती राहों में,
ठहरी सिमटी बाहें
 हैं ।
सुनसान सा शहर है,
तेरी मेरी बातों में ।
गीले सूखे रहते हैं,
सावन की बरसातों में ।


1 comment:

  1. सुनसान सा शहर है,
    तेरी मेरी बातों में ।
    मुझे ये लाइनें बहुत अच्छी लगीं क्योंकि मेरे दिल के करीब हैं जैसे अब खुद मेरी बातों का शहर सुनसान रहने लगा है | वैसे पूरी रचना सुंदर है रचियता भी कभी दूर से कभी पास आकर रचना में शामिल है | हर वर्ग को अच्छी लगनी चाहिए क्योंकि सबके के लिये कुछ न कुछ है अब यह पाठक पर निर्भर करता है वह किस गली का ग्राहक है ............. किन राहों से गुजरा है ......

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