Thursday, January 2, 2014

बस यूँ ही-३ .... छोटी सी बात

बात इतनी सी थी, 
और कही भी न गई ।
पलकों से टपकी ,
आँखों में रखी भी न गई ।
ज़हर होता तो, 
बाँध लेता गले में, मगर ।
अमृत थी, जानकर -
निगली भी न गई ।
मेले में मुखौटे,
पहने तो बहुत ।
दलीलों में उनकी,
भटके तो बहुत ।
बात ये अकेली,
मंज़िल ना पा जाए कहीं -
ये सोचकर, भीड़ में
छोड़ी भी न गई ।
जुनूँ है, फ़ितूर है ,
खुद में है और दूर है । 
हर जवाब एक सवाल है ,
बात है, बवाल है । 
खुद मायने अपने,
समझ न लें कहीं । 
चुप चाप खुद में,
सुलझ न ले कहीं । 
ये बात इस डर से ,
मन में रखी भी न गई । 
रात की दहलीज़ पे,
सुबह के निशान हैं ।
आरज़ू की ज़मीन पे,
सपनों के मकान हैं ।
कोई रास्ता तो होगा ,
जो मुड़ के फिर न आए । 
आतिशे तमन्ना से,
आस्मां जलाए । 
आती जाती साँस पे ,
हर रात तुलती जाएगी। 
ज़िन्दगी यूँ ही कटेगी, 
और बात बहती जायेगी। 

6 comments:

  1. इस ब्लॉग पोस्ट से साल की शानदार शुरुआत करने पर बधाई ! :)

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  3. हर जवाब एक सवाल है ,
    बात है, बवाल है ।
    खुद मायने अपने,
    समझ न लें कहीं ।
    चुप चाप खुद में,
    सुलझ न ले कहीं ।

    ग़ज़ब!

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