बात इतनी सी थी, 
और कही भी न गई ।
पलकों से टपकी ,
आँखों में रखी भी न गई ।
ज़हर होता तो, 
बाँध लेता गले में, मगर ।
अमृत थी, जानकर -
निगली भी न गई ।
मेले में मुखौटे,
पहने तो बहुत ।
दलीलों में उनकी,
भटके तो बहुत ।
बात ये अकेली,
मंज़िल ना पा जाए कहीं -
ये सोचकर, भीड़ में
छोड़ी भी न गई ।
जुनूँ है, फ़ितूर है ,
खुद में है और दूर है ।
हर जवाब एक सवाल है ,
बात है, बवाल है ।
खुद मायने अपने,
समझ न लें कहीं ।
चुप चाप खुद में,
सुलझ न ले कहीं ।
ये बात इस डर से ,
मन में रखी भी न गई ।
रात की दहलीज़ पे,
मेले में मुखौटे,
पहने तो बहुत ।
दलीलों में उनकी,
भटके तो बहुत ।
बात ये अकेली,
मंज़िल ना पा जाए कहीं -
ये सोचकर, भीड़ में
छोड़ी भी न गई ।
जुनूँ है, फ़ितूर है ,
खुद में है और दूर है ।
हर जवाब एक सवाल है ,
बात है, बवाल है ।
खुद मायने अपने,
समझ न लें कहीं ।
चुप चाप खुद में,
सुलझ न ले कहीं ।
ये बात इस डर से ,
मन में रखी भी न गई ।
रात की दहलीज़ पे,
सुबह के निशान हैं ।
आरज़ू की ज़मीन पे,
सपनों के मकान हैं ।
कोई रास्ता तो होगा ,
जो मुड़ के फिर न आए ।
आतिशे तमन्ना से,
आस्मां जलाए ।
आती जाती साँस पे ,
हर रात तुलती जाएगी।
ज़िन्दगी यूँ ही कटेगी,
और बात बहती जायेगी।
जो मुड़ के फिर न आए ।
आतिशे तमन्ना से,
आस्मां जलाए ।
आती जाती साँस पे ,
हर रात तुलती जाएगी।
ज़िन्दगी यूँ ही कटेगी,
और बात बहती जायेगी।
 
इस ब्लॉग पोस्ट से साल की शानदार शुरुआत करने पर बधाई ! :)
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहर जवाब एक सवाल है ,
ReplyDeleteबात है, बवाल है ।
खुद मायने अपने,
समझ न लें कहीं ।
चुप चाप खुद में,
सुलझ न ले कहीं ।
ग़ज़ब!
Bahut khub
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletevaakai Umda,
ReplyDelete