सोलह मई के बाद,
जब भारत भाग्य विधाता
की बदलेगी तक़दीर ।
और जीत का करके दावा, 
होगा दिल्ली में तख्तनशी ।
तुम हार कर सब आना,
एक बार फिर वहीं ।
बेताज खामोशी जहाँ,
फिरती है शान से ।
सब तजकर चले आना,
सोलह मई के बाद में ।
चमक रही थी गलियाँ,
जहाँ उजले नारों से ।
धूसर पड़ी हुई है अब,
खाली मटमैले वादों से ।
बचकर आँधी से ज़रा,
बनकर धीमी सी हवा,
( आए जो तरस थोड़ा
वीरानों के हाल पे )
हौले से गुज़र जाना, 
सोलह मई के बाद में ।
साऊन्ड बाईट से कटी हुई,
कुछ गुमनाम आवाज़ें खोई हैं ।
अख़बार के जागे पन्नों पर,
अब भी कुछ ख़बरें सोई हैं ।
जो तश्बीर से थी ढकी दरारें
अब सीली पड़ी हैं वो दीवारें 
बुनियाद एक चुनकर यहाँ से
बुनियाद एक चुनकर यहाँ से
ले आना तुम बोने वहाँ पे ।
कोई भीड़ जहाँ न जाती हो
ना आवाज़ जीत की आती हो 
कोई झूठा वादा कर के कभी
एक नया बहाना कह के अभी ।
कोरे पर्चे पर लिखकर नाम 
मेरी हार के वो किस्से तमाम ।
इस भूले से उम्मीदवार को
मत देना अपना याद से,
तुम पर कभी न राज करूँगा,
सोलह मई के बाद में ।
सोलह मई के बाद में ।
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इसे लिखने का आईडिया रवीशजी के एक लप्रेक से आया।किसी ने भेझी थी पढ़ने को। "सोलह मई के बाद " ये फ्रेज वहीं से लिया है।
 
जरूरी नहीं था
ReplyDeleteपर हार चुनी तुमने
टूटे रथ के पहियों तले
कुछ टुकडे सपनों के हैं
जो बुने गये थे
युद्ध से पहले ही
क्यों बांध लाये यद्धस्थल तक
काश तुमने सारथी चुना होता
धनुष तो शत्रु भी लाये थे
गैर जरूरी थीं, पर लिख दीं कुछ लाईनें, जो अपकी कविता की आत्मा से बतियाते बन गयीं। इसके लिये क्षमा कीजियेगा। जहाँ तक कविता का प्रश्न है यह अद्भुद है, अति सुंदर है मर्मस्पर्शी है, और जैसा कि मैने पहले भी क़हा इसकी आत्मा से बात की जा सकती है। इस कविता को लिखने के लिये आपको धन्यवाद देता हूँ, बधाई भी।
बेहद खूबसूरत रचना है जो आज हर भारतीय के मन का हाल दर्शाती है । देश में 16 मई को ले कर जो हलचल और कौतूहल है, उसको बखूबी अंकित किया है ।
ReplyDelete16 मई सिर्फ एक और तारीख है !
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