Friday, October 31, 2014

एक सवाल

दो सहमी, सिमटी आँखों में
आकाश डुबाना होता,
माथे पर गिरती वादी से
एक चाँद उठाना होता,
ग्रहण लगाते उस तिल से
फिर नज़र बचाना होता, 
सोचता हूँ मैं क्या करता ?
जो एक अक्स बनाना होता !

होठों के चौबारे पे
चुप्पी जलाई होती,
नाक पे बैठे हीरे से
कुछ साँस कटाई होती, 
एक ठहरे,सोए किस्से में
क़िरदार जगाना होता,
उड़ती हुई एक नज़्म को 
काग़ज़ पे चलाना होता,  
सोचता हूँ मैं क्या करता ?
जो एक अक्स बनाना होता !

गलियों सी उलझी साँसों में,
एक रूह छुपानी होती ।
दो रेखाओं के बीच चले,
वो आँख भी लानी होती ।
कोरे कागज़ की कोख़ से 
एक नूर चुराना होता,
सोचता हूँ मैं क्या करता ?
जो एक अक्स बनाना होता !

Saturday, October 25, 2014

गिरफ़्त

दिवाली की 
अगली सुबह,
जब सूरज,
दीयों का शोर
बुझाने लगे ।
हवा आते जाते,
किसी सूखे पत्ते पे
ओंस की लड़ियाँ
बजाने लगे ।
तुम बनकर
अमावस का आस्मां,
अपने चाँद को यूँही
कसकर थामे रहना ।

Wednesday, October 22, 2014

गवाही

सच कहना -
तुमने सुनी है न,
उस ख़ाली पल की हँसी ।
जैसे सुनसान सड़क पर,
हों ढेरों धूप के गड्ढे 
जिन्हें टाँपती, पार करती, 
एक सूखी हुई पत्ती । 
जिस हँसी में -
न दर्द है,
न किस्सा कोई । 
एक गीला शगाफ़1 है
सूखे किसी चेहरे पर ।
या उठती कोई आवाज़ है,
सदियों के पहरे पर । 

सच कहना -

( क्योंकि सच क्या है, 
मुझको पता नहीं )
साँसों के बीच दफ़्न
इस ख़ाली लम्हे में, 
कौन जीता है ?
या बहता जाता है कुछ,
जिसे फिर -
कोई ख्याल पीता है । 

सच कहना, 

जब समय पर ग्रहण लगता है ,
और बोसीदा2 यादों का आस्मां 
बिलकुल साफ़ दिखता है, 
एक धुंध तुम्हारे अंदर 
चुपके से -
बीज कोई बोती है क्या ?
ख़ाली समय की साँसे,
फिर जिसे,
अपने हाथों से रोपती हैं क्या ?

सच कहना -
घड़ी की घूमती सुइयों से,

जब कोई लम्हा बच निकलता है ।
और हाथ पकड़ कर तुम्हारा,
कहीं दूर लेजाकर बैठता है ।
तुमने चाहा था न
पूछना उससे - 
ख़ाली कमरे में कौन,
भरी आवाज़ सा रहता है ?

सच कहना,
जब भी यूँही कोई तुम्हें
सच कहने को कहता है ।
कौन सा ख़ाली लम्हा फिर,
तुमको गीता सा लगता है ?



1 दरार ,crack
2. old, worn out , rotten,

Tuesday, October 14, 2014

एक घटना

ठहरो, रुको
सुनो ज़रा -
अभी अभी
ठीक यहाँ
एक लम्हे की फौत हुई ।
याद में उसकी
जला लो ज़रा
तेरह साँसे तो अपनी ।

सुनो,
हाँ तुम ही -
अभी ठीक यहीं
एक लम्हा जन्म लेगा ।
इसके प्रसव की पीड़ा
किसने सही,
ये तुम मुझसे
पूछना नहीं ।
पर देखकर उसका चेहरा
कोई बीता याद आने लगे ।
या चाल में उसकी
कोई राह पुरानी
लड़खड़ाते दिखे ।
तो तुम इसे केवल
पुनर्जन्म की बस
एक घटना मान लेना ।

Sunday, October 5, 2014

सितम्बर स्पेशल -२

१)
विश्व धरोहर 



घड़ी की टिक टिक सी
एक-एक कर गिरती
इन पत्तियों को देखो
और देखो,
शहतूत के उस पेड़ से 
झूलता-
वो रेशम का एक कीड़ा ।
कैसे धीरे धीरे
सारा गिरता समय
अपने अंदर समेटकर
रेशमी धागे से उसकी
एक ममी बना रहा है ।

हाँ ,
इस सितम्बर मैंने
अपने आँगन के
एक छोटे से पेड़ पे
मिस्र का पिरामिड
बनते देखा है ।

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२)
उपाय 


ये सितम्बर की चाल है
जिसने आते-जाते
शहर की सारी सड़कों पे
बिछा दिए हैं पत्ते ।
कि जब भी तुम गुज़रो
मेरी गली से होकर
तुम्हारे आने की ख़बर
शहर भर को लग जाए ।

अबकी ऐसा करना
जब भी हो इधर आना
मैं किसी डाली से झूलता
हवा का कोई आँचल
हल्का सा छेड़ दूँगा ।

वो शाख़-शाख़ घूमकर 
शिकायत जब मेरी करने लगे ।
और एक एक कर 
पत्तियाँ मुझपे बरसने लगे
तुम उनकी आहट ओढ़े
बचते हुए शहर भर से,
मुझे बचाने चली आना ।

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३) 
संवाद 


देखा था सुबह
आँगन में पड़े,
ताज़ा अख़बार में लिपटा
एक सूखा सा पत्ता ।
( जिसे कोई चुप चाप
रखकर चला गया )
पहली तारिख की
इस सुबह, सितम्बर ने -
अपने आने की खबर
मुझे कुछ इस तरह दी  ।

पोस्ट स्क्रिप्ट :
अख़बार पलटने में
आती कई आवाज़ों से
वो पत्ता रह रहकर
ज़मीन पर फड़फड़ाता था। 
मनो जैसे,
किसी पुराने परिचित से
अपनी ही किसी बोली में 
हौले से बतियाता था ।
उस सुबह, 
मेरी आँखें, ऐनक ओढ़े ,
दुनियाभर की ख़बर ले रहीं थी । 
और सामने ही, 
चाय के कप पर होती 
इस अद्भुत बातचीत से 
बिलकुल अनजान थी ।
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फोटो क्रेडिट - मेरी आई और मेरा आईफोन 

Thursday, October 2, 2014

सितम्बर स्पेशल - १



मौसम की ज़बान पे
भाषा का बदलना -
बदलती हर दिशा से
हवाओं का झगड़ना -
आँगन में पत्तों का
अनशन पर बैठना  -
सितम्बर है ।

हरे हरे पेड़ों का
सावन की मेंहदी उतरने पर
शरमा के सूर्ख हो जाना -
मौसमों की याद को 
पंखों में भर कर, चिड़ियों का 
आस्मान खाली कर जाना -
ख़ाली उजड़े घोंसलों के
खंडहरों के पीछे,
गिलहरियों का हर शाम मिलना
और आते-जाते, शाखों पर
दबे हाथ कुछ कुरेदना -
सितम्बर है ।

सुन्दर नंगी डालियों का
आस्मां को कसकर पकड़
गहरा नीला कर देना -
आधे लिखे खतों को
बार बार पूरा पढ़कर
खुश्क हवा में उड़ाना 
और उसे गीला करते रहना -
सितम्बर है ।

ठंडी बरसात से,
सावन के भुझों को
फिर से जलाना -
मौसम के बदलने पर
पुराने बुखार का 
फिर गले से लग जाना -
भावना के झोंकों में
कविता से शब्दों का
एक-एक कर गिर जाना - 
सितम्बर है ।