Saturday, October 25, 2014

गिरफ़्त

दिवाली की 
अगली सुबह,
जब सूरज,
दीयों का शोर
बुझाने लगे ।
हवा आते जाते,
किसी सूखे पत्ते पे
ओंस की लड़ियाँ
बजाने लगे ।
तुम बनकर
अमावस का आस्मां,
अपने चाँद को यूँही
कसकर थामे रहना ।

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