Sunday, October 5, 2014

सितम्बर स्पेशल -२

१)
विश्व धरोहर 



घड़ी की टिक टिक सी
एक-एक कर गिरती
इन पत्तियों को देखो
और देखो,
शहतूत के उस पेड़ से 
झूलता-
वो रेशम का एक कीड़ा ।
कैसे धीरे धीरे
सारा गिरता समय
अपने अंदर समेटकर
रेशमी धागे से उसकी
एक ममी बना रहा है ।

हाँ ,
इस सितम्बर मैंने
अपने आँगन के
एक छोटे से पेड़ पे
मिस्र का पिरामिड
बनते देखा है ।

----
२)
उपाय 


ये सितम्बर की चाल है
जिसने आते-जाते
शहर की सारी सड़कों पे
बिछा दिए हैं पत्ते ।
कि जब भी तुम गुज़रो
मेरी गली से होकर
तुम्हारे आने की ख़बर
शहर भर को लग जाए ।

अबकी ऐसा करना
जब भी हो इधर आना
मैं किसी डाली से झूलता
हवा का कोई आँचल
हल्का सा छेड़ दूँगा ।

वो शाख़-शाख़ घूमकर 
शिकायत जब मेरी करने लगे ।
और एक एक कर 
पत्तियाँ मुझपे बरसने लगे
तुम उनकी आहट ओढ़े
बचते हुए शहर भर से,
मुझे बचाने चली आना ।

-----
३) 
संवाद 


देखा था सुबह
आँगन में पड़े,
ताज़ा अख़बार में लिपटा
एक सूखा सा पत्ता ।
( जिसे कोई चुप चाप
रखकर चला गया )
पहली तारिख की
इस सुबह, सितम्बर ने -
अपने आने की खबर
मुझे कुछ इस तरह दी  ।

पोस्ट स्क्रिप्ट :
अख़बार पलटने में
आती कई आवाज़ों से
वो पत्ता रह रहकर
ज़मीन पर फड़फड़ाता था। 
मनो जैसे,
किसी पुराने परिचित से
अपनी ही किसी बोली में 
हौले से बतियाता था ।
उस सुबह, 
मेरी आँखें, ऐनक ओढ़े ,
दुनियाभर की ख़बर ले रहीं थी । 
और सामने ही, 
चाय के कप पर होती 
इस अद्भुत बातचीत से 
बिलकुल अनजान थी ।
----
फोटो क्रेडिट - मेरी आई और मेरा आईफोन 

1 comment:

  1. अच्छी कविताएँ हैं जाने क्यों इतनी देर रुकी रहीं .....चित्रांकन पर आपका हाथ सक्षम है इसको अधिकांश कविताओं में होना चाहिये .....

    ReplyDelete