Saturday, June 29, 2013

बिना मीटर की ग़ज़ल - ३

उड़ के जा रहे हो जो इन बादलों के परे,
कहीं बरस न जाना इन आँखों के परे ।१।

अँधियारा बहुत है शहर में आजकल,
क्यों छुपाया है अफताब को झरोखों के परे ।२।

पाँव में लगी रह गई कुछ मिट्टी गाँव की,
निकल पड़े जब टहलने उन चिट्ठियों के परे ।३।

मुस्कुराता नहीं वो आजकल शेर पर हमारे,
क्या देखा है उसने हमें इन महफिलों के परे ? ।४।

किस पते पर ख़त लिखा करें तुझे अब हम?
सुना है फ़रिश्ते तो रहते हैं बादलों के परे ।५।

ज़रा रोककर पूछो उस थके हुए राही से, 
कभी देखा है उसने इन रास्तों के परे ।६।

मशहूर हुए हैं तेरे सितम में जीने वाले,
वरना जानता कौन है हमें इन गलियों के परे? ।७। 


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