Saturday, June 15, 2013

ये आदत भी अजीब है ..

बेसाख्ता दिले इज़हार करना, ये आदत भी अजीब है।
सब सुनकर भी अंजान रहना, ये आदत भी अजीब है।।

जिसके शेरों को मानकर आयतें, सजदे में है सारा शहर।
उस शायर का बेनाम ख़त लिखना, ये आदत भी अजीब है।।

ठूंठे पेड़ पर चले कुल्हाड़ी, तो एक आवाज़ फिर भी आती है।  
उनका ज़ुल्म सहकर भी चुप रहना, ये आदत भी अजीब है।।

हर मोड़ पर है कई मौके, मौका-परस्ति के हैं अपने उसूल।
बदले ब'हर तो तखल्लुस बदलना, ये आदत भी अजीब है।। 

ख़्वाबों में मिलते हैं वो हर रोज़, फिर जागते हैं रात भर।
घंटों भीगकर भी कुछ सूखा रह जाना, ये आदत भी अजीब है।।
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१- meter of a ghazal/misra/sher
२- pen-name

1 comment:

  1. ये नीचे "no comments" लिखा हुआ अच्छा नहीं लग रहा था...इसलिये मेरा ये कमेंट।
    दुबारा-तिबारा पढ़ चुकी हूँ इस पोस्ट को :)
    बेहतरीन !

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