Saturday, June 1, 2013

सूरज की सुबह

बड़ी देर से निकला, 
सूरज आज अपने घर से।
पहाड़ी के पीछे, झरने में -
घंटों नहाता रहा । 
कुछ ठंडा ठंडा निकलते दिखा,
उन दरारों के झरोंखे से।
और फिर बादलों का परदा खींचे,
गीली, ठंडी हवा में,
कर के वज़ू -
चला गया फ़ज्र की नमाज़* अदा करने ।
कर के सजदा जो उठा,
तो अबकी चमक रहा था बहुत।
शायद मांग ली थी पूरी नूर-ए-इलाही इसने।

निकलते देख यूँ बादशाह-ए-आस्मां को,
दरबान मुर्गे ने यूँ कर दिया ऐलान ।
निकल रहे हैं बादशाह रियासत के दौरे पर।
गौर से देखेंगे सबको इस दौरान। 

फिर रोज़ की तरह,
देखकर ज़मीं की चाल,
होगा गुस्से में आग-बबूला ।
गरम आहों से देखेगा दुनिया का हाल।
आख़िर में,
साथ लिए आशा की एक किरण। 
- ये सोचकर कि सब ठीक होगा कल,
कुछ बुझा-बुझा, उदास सा 
वापस लौट जाएगा अपने घर को। 
फिर करने कल की शुरुआत,
उम्मीद की सहर से ।
बड़ी देर से निकला,
सूरज आज अपने घर से।
---
* सुबह की (पहली) नमाज़।


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