Sunday, June 30, 2013

वो कौन थी ?

एक दिन रोड के किनारे मैं खड़ा,
इंतज़ार कर रहा था बस का।
सड़क के दूसरी ओर तभी,
मिली हल्की-सी झलक उसकी। 
जो लगा था उसे देखकर मुझे,
था वो 'पहली नज़र' वाला तो नहीं ?
सड़क के दो सिरों के बीच,
सैकड़ों निगाहें गुज़रती रही।
पर मेरी ये दो आखें जाकर,
उन दो आँखों पर जा टिकती रही।
एक दिन बाँध सब्र का,
जब मेरा आखिर टूट गया।
बहता चला गया मैं उसके किनारे,
और अपना किनारा छूट गया।

मिलकर उसे कुछ कहने से पहले,
मैंने उसे कुछ पढ़ना चाहा था।
क्या छपा था उसके चेहरे पर,
जो मेरी आखों ने सुनना चाहा था?
पर उसकी महकती खुशबू को,
मैं बस देखता ही रह गया।
क्या कहने आया था उसको,
ये सोचता ही रह गया।
वो सड़क किनारे का रास्ता,
आहिस्ते मेरे घर को आ गया।
हर शाम मुलाक़ात होती रही,
जीने का मज़ा आ गया।

दफ़्तर से मेरे लौट आते ही,
ख़बर उसको लग जाती थी।
शाम आँगन की मेरी फिर
उसके संग सज जाती थी।
कई बार उसके एक हाथ पर,
अपना नाम लिख देता था।
जब मिटाने लगती वो उसको,
दूजे पर ख़त रख देता था।
ख़त में छुपा हुआ फूल पढ़कर,
आज भी संभाले रखा है उसने।
आज भी महकता है वो मुसलसल,
उस गुलबदन की खुशबू से।
मेरे ज़हन में गूंजते थे, 
बस उसके अलफ़ाज़ -
वो ऐसे असरदार थे ।
कभी लगता था वो है एक ही शख्श,
या उसके अन्दर कई किरदार थे!
रातों को थामकर उसके हाथों से,
कितने किस्सों की नब्स को सुना था।
कितनी कहानियों में उसकी मैंने,
अपने ही सपनों को बुना था।
कई बार सोते सोते, 
जो मेरे सीने से वो लग जाती थी।
फिर दो धड़कनों के बीच जाने,
कितनी सदियाँ गुज़र जाती थी।

आज भी हर रात, आँख लगे से पहले-
कुछ कहते-कहते सिरहाने बैठ जाती है।
ये किताब है मेरी, ना जाने मुझसे,
ये कैसे-कैसे रिश्ते बनाती है ।

  

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