Thursday, June 27, 2013

बड़बड़ाहट 2

बाहर हवा बिना मतलब, सांय सांय कर हाँफते हुए दौड़ रही है। ये हफ़्ता भी ऐसे ही हाँफता हुआ निकल जाएगा। हफ़्ते के पांच दिन, सरकारी पञ्चवर्षीय योजना की तरह गुज़र जाते हैं। इसके बाद हम भी किसी गाँव की तरह, एक योजना बनकर कलेंडर में दफ़्न हो जाएंगे। सांस धीमे से मत लिया करो। फुफ्कारो। हर जाती हुई साँस पर आने वाली साँस का भार रख कर तौलते रहो। खुद को थका हुआ घोषित करने के लिए रोज़ शाम घर लौटकर चाय पियो। नींद को चाय में डुबोते रहो। सोना मत। अभी "मीडिया हाय हाय" करना बाकी है। खुद को जिंदा बताना बाकी है। पेड मीडिया का अनपेड दर्शक दिनभर दफ़्तर में धूल खा रहा है। रात को घर लौटकर नहाओ। तौलिए से अपने शरीर पर लगे दफ़्तर को पोंछ दो। छत पर जाकर आसमान में चाँद को मत ढूँढो। इट इज़ टू ओल्ड फैशन। टीवी पर एंकर का चाँद- सा चेहरा देखिए। कौन किसको मामा बना रहा है पता नहीं। टीवी के बक्से में ७ और बक्से हैं। ये चाँद के साथ खड़े  उसके सप्तऋषि है। आप कब सन्यास ले रहे हैं? मुह खोलते ही झट से टिपण्णी निकालने की बूटी कहाँ मिलती है? टिपण्णी नहीं दे सकते तो मेरी तरह गाली देते रहिए। खुद को जिंदा होने का प्रमाण पत्र बांटते रहिए। कोई रोको इस हवा को। नहीं तो ये पेड़ हिल हिल कर जाग उठेंगे। ये कैसी हवा है? लगता है कोई सिक्कुलर का कूलर चलता छोड़ गया है। हवाई सर्वेक्षण के हेलीकाप्टर का पंखा घुमा घुमा कर नेता खुद बवंडर बन रहा है। ठीक भी है। अहम् को जिंदा रखने के लिए हेलीकाप्टर की हवा ज़रूरी है। नेता के भाषण में अपनी आवाज़ कौन सुनता है? अपनों को चिट्ठी कौन लिखता है? पहचानी आवाजों को कौन पढ़ता है? ख़रीद कर कभी न पढ़ी किताबों पर बैठकर ज़हनीयत को रद्दी में बेच दो। ख़राब से ख़राब लिखो। पर चाँद पर मत लिखना। इट इज़ टू ओल्ड फैशन। चाँद से बिंदी चुराकर ग़ालिब में नुख्ता लगाते रहो। अगला लिटरेचर फेस्टिवल झुग्गी में कराओ। मीडिया को बुलाओ। उफनते गटर की महक में कविता पढ़ो। आज ये हवा नहीं रुकेगी। आँखों से रात बह रही है। खाली दिमाग में नींद गूँज रही है। खाली तो पेट भी है। खाली पेट की आवाज़ ही अंतरात्मा की असली आवाज़ है। मेरी तरह हमेशा दूसरे के चले हुए रास्ते पर चलो। किसी और की मौलिकता को अपने ट्रेसिंग पेपर से ढँक दो। ये लेख भी किसी दुसरे का है। दूसरा ही अपना है। अपनों को फेसबुक पर ढूँढ़ते रहो। हवा को चुप करा कर सुला दो। इतनी जिंदा आवाजों से अब बेचैनी होती है। 


लेख का फॉर्मेट रवीशजी के "पागलनामा" से प्रेरित/कॉपी किया है।
http://naisadak.blogspot.com/

1 comment: