घर के पीछे, आँगन में कई पेड़ पौधे हैं। जब बर्फ़ नहीं रहती तब काफ़ी हरियाली रहती है यहाँ। आज सुबह बाहर बैठा तो देखा इन्में से दो वृक्ष पूरे सफ़ेद हो गए हैं। पहले तो लगा, शायद हरे ताज़ा पत्तों पर चटकीली धूप का कोई नया खेल है। पर ध्यान से देखने पर पता चला, पूरा वृक्ष रुई-नुमा किसी चीज़ से ढका हुआ था। ऐसा लग रहा था पिछली रात किसी शरारती जादूगर ने, कपास के पौधे को वृक्ष बना दिया है। हल्की सी हवा चली तो उस पेड़ से असंख्य सफेद, हलके, रुई के फ़ाहे- निकलकर हवा में तैरने लगे। ऐसे लग रहे हैं जैसे रात के काले आसमान में तैरते दिखते हैं हज़ारों सफ़ेद तारे। पत्तियाँ हाथ हिलाते हुए उन्हें गुड बाएँ कर रहीं हैं। शहनशाह पेड़ अपनी जगह खड़ा है - शांत, सुरक्षित, स्थिर । हर हवा के झोंके में, भेज रहा है अपने लाखों सैनिकों को। अब सैनिक हैं या सफ़ेद चोला ओढ़े किसी धर्म के प्रचारक, कह नहीं सकता.. वैसे भी इनमें ज़्यादा फ़र्क़ नहीं ! ऐसी ही निकले होंगे कई साल पहले खोजक, सैनानी, प्रचारक। अपने घर, पेड़ से निकलकर..पास के गली, शहर होते हुए ,कहीं रुकते और फिर निकल पड़ते हुए, अंजान मंज़िलों की ओर। उस पेड़ से कुछ दूर, जो बाँझ से पेड़ (जिनमें फूल,फल न आया हो) खड़े थे, इन फ़ाहों को अपनी सारी शाखाएँ को फैलाकर मानो समेट लेना चाहते हैं। किसी अपने के न होने का ग़म कोई मिटा तो नहीं सकता, पर उसे कम करने में कोई हर्ज़ नहीं। नए पेड़ पर पाँव रखते ही ये आवारा ख़ानाबदोश, उसी पेड़ का फूल बनकर सज गए। आवारगी को भी किसी के आसरे की ज़रुरत होती है। चंद चिड़ियाँ, इन फाहों को चोंच में दबाए, अपनी घोंसले की और मुड़ गईं। शायद कल रात बच्चों को ठण्ड लगी होगी। तो लीजिये आज कम्बल का इंतज़ाम हो गया। प्रकृति सबका ख्याल रख लेती है। उनका भी, जो किसी अमीर बाप की बिगड़ी औलाद की तरह, प्रकृति को अपनी ज़रुरतें पूरा करने वाली मशीन समझते हैं। कुछ फ़ाहे जो उड़ते-उड़ते थक गए, ज़मीन पर बिछी घाँस पर लेट कर आराम करने लगे। धीरे-धीरे ज़मीन पर भी सफ़ेद गलीचा बिछ जाएगा। इसी बीच, पास के घरों से बच्चे निकल आए हैं। स्कूल की छुट्टी है तो चाल में उत्साह है। पाँव पूरी उन्मुक्तता से चल रहे हैं। उछल कूद कर सब कोई ना कोई उड़ता हुआ गुच्छा तोड़ लेना चाहते हैं। कुछ हैं जो किसी एक फ़ाहे के पीछे ही भागे जा रहे हैं। भागते भागते कईफाहों के साथ ये भी न उड़ जाएँ। काश, सभी बच्चे ऐसे ही अपनी-अपनी चाहत का, अपने अरमानों का गुच्छा, पूरी आज़ादी से उछलकर मुट्ठी में समेट सकते। 
 
Observed your narration is vivid. it is nice to read sentiments flow in waves.
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